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गंगा दशहरा: इस वजह से धरती पर प्रकट हुई थी गंगा मैय्या
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन नदियों में श्रेष्ठ गंगा, पहली बार धरती पर आयी थी। गंगा दशहरा पर लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं और इस पवित्र नदी की पूजा अर्चना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से शिव जी और विष्णु जी दोनों का ही आशीर्वाद प्राप्त होता है। राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या करके देवी गंगा को प्रसन्न किया था तब वह धरती पर अवतरित हुई थीं। इस बार गंगा दशहरा 24 मई, 2018 बृहस्पतिवार को है। आइए जानते हैं देवी गंगा के धरती पर आने के पीछे की कहानी।
ऋषि दुर्वासा का श्राप
एक कथा के अनुसार देवी गंगा ब्रह्मा जी की देख रेख में पली बढ़ी हैं। एक दिन ऋषि दुर्वासा नदी में स्नान कर रहे थे की अचानक तेज़ हवा का झोंका आया और उनके सारे वस्त्र उड़ा कर ले गया। यह देख गंगा जी को हंसी आ गयी, तब क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे दिया कि वह धरती पर अपना जीवन व्यतीत करेंगी और लोग अपने पाप धोने के लिए गंगा नदी में डुबकियां लगाएंगे।
जब धरती पर अवतरित हुई गंगा
कहते हैं राजा सगर ने खुद को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। यह सुनकर देवराज इंद्र चिंतित हो उठे उन्हें लगने लगा कि कहीं उनका सिंहासन न छीन जाए। तब इंद्र ने अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में उसे छिपा दिया। जब सगर को वह अश्व नहीं मिला तो उसने अपने 60 हज़ार पुत्रों को वह अश्व ढूंढ़ने के लिए भेज दिया। सगर के पुत्र अश्व को ढूंढते ढूंढते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि वह अश्व एक पेड़ से बंधा हुआ है। उन्हें लगा कि कपिल मुनि ने ही वह अश्व चुराया है।
उनके शोर गुल से कपिल मुनि का ध्यान भंग हो गया तब उनकी क्रोधाग्नि वाली दृष्टि से सगर के सभी पुत्र जल कर भस्म हो गए। बिना अंतिम संस्कार के उनकी आत्मा इधर उधर भटकने लगी, तब उनमें से बचे उनके एक भाई आयुष्मान ने कपिल मुनि से क्षमा याचना की और उनसे अपने भाइयों की मुक्ति का रास्ता पूछा तब उन्होंने बताया कि इनकी राख पर से गंगा प्रवाहित करने से इन्हें मुक्ति मिल जाएगी और इसके लिए गंगा को धरती पर लाना होगा। तुम ब्रह्मा जी से प्रार्थना करो।
तब कई पीढ़ियों के बाद भगीरथ ने कठोर तपस्या करके देवी गंगा को प्रसन्न किया और उन्हें धरती पर चलने को कहा किन्तु गंगा का प्रचंड वेग धरती नहीं सहन कर पा रही थी। तब शिव जी ने गंगा को रोकने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया। भगीरथ ने शिव जी को सारी बात बताई और उनसे प्रार्थना की कि वे देवी गंगा को आज़ाद कर दें। महादेव ने अपनी जटाओं में से धीरे धीरे उन्हें मुक्त किया।
तब गंगा जी भगीरथ के नाम से धरती पर आयीं और सगर के पुत्रों के राख के ढेर पर से होते हुए जहनु मुनि के आश्रम को बहा दिया। यह देख जहनु मुनि को क्रोध आ गया और उन्होंने गंगा को लील लिया। एक बार फिर भगीरथ ने उनसे प्रार्थना करके गंगा जी को मुक्त कराया और इस बार वह जाह्नवी के नाम से जानी गयीं।
गंगा दशहरा पर इन चीज़ों का करें दान
गंगा दशहरा पर दान, व्रत, जप और तप का बड़ा ही महत्त्व होता है। इस दिन हाथ का पंखा और सत्तू दान करना बड़ा ही शुभ माना जाता है। इस दिन जिस भी चीज़ का दान करें उसकी संख्या दस होनी चाहिए।
शिवलिंग का जलाभिषेक
गंगा दशहरा पर शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। इस दिन काशी दशाश्वमेध घाट में स्नान करके, शिवलिंग का दस संख्या के गन्ध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करना बहुत ही लाभदायक होता है। गंगा नदी में स्नान करके या फिर घर पर ही स्नान करके भगवान के समीप बैठ जाएं, फिर 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' का जाप करें। देवी गंगा और उन्हें धरती पर लाने वाले भगीरथ का स्मरण करें, आपके सभी पापों का नाश हो जाएगा।