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नारद जयंती 2018: जानिये नारद जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

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नारद जयंती: जानें आखिर क्यों अविवाहित रहे नारद मुनि | Boldsky

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देवताओं के ऋषि, नारद मुनि की जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने की कृष्णपक्ष द्वितीया को मनाई जाती है। ऐसा मानना है कि इस दिन नारद जी का जन्म हुआ था। कहते हैं इनका जन्म ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था इसलिए इन्हें ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में भी जाना जाता है।

नारद मुनि का आदर केवल देवताओं के बीच नहीं होता था बल्कि असुर भी उनका आदर सत्कार करते थे। नारद जी ब्रम्हांड की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का काम करते थे या यूँ कहें वे उस समय के पत्रकार थे। देवताओं के ऋषि होने कारण इन्हे देवर्षि भी कहा जाता है।

नारद जी ने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। वे परम ज्ञानी थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। वे हमेशा नारायण नारायण की ही माला जपते रहते थे।

आपको बता दें इस बार नारद जयंती 1 मई 2018 को है। 30 अप्रैल, 2018 को सुबह 6:28 बजे से प्रतिपदा तिथि शुरू होगी और 1 मई, 2018 को सुबह 6:47 बजे समाप्त हो जाएगी।

आइये इस अवसर पर नारद मुनि के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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कैसे हुआ नारद मुनि का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद 'उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। कहते हैं एक बार अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहाँ आया। यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व की श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि’ में जन्म लेगा।

बाद में उस गंधर्व का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। कहते हैं वह बालक संतों का जूठा खाना खाता जिससे उसके ह्रदय के भी सारे पाप नष्ट हो गए। पांच वर्ष की आयु में उसकी माता की मृत्यु हो गई। अब वह बालक एकदम अकेला हो गया। माता की मृत्यु के पश्चात उस बालक ने अपना समस्त जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठा था तभी अचानक उसे भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई। इस घटना के बाद उस बालक के मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा और प्रबल हो गई।

तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा। समय आने पर यही बालक ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुआ जो नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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इसलिए रह गए नारद जी अविवाहित

कहते हैं नारद जी का विवाह उनके पिता ब्रह्मदेव के कारण नहीं हो पाया था। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने नारद जी को सृष्टि के कामों में उनका हाँथ बटाने और विवाह करने के लिए कहा था किन्तु नारद जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया था। ब्रह्मा जी ने उन्हें लाख समझाया किन्तु देवर्षि अपनी बात पर अडिग रहे। तब ब्रह्मदेव अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने देवर्षि को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया।

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इधर उधर भटकते रहे नारद

कहते हैं राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति से 10 हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ था। लेकिन इनमें से किसी ने भी दक्ष का राज पाट नहीं संभाला क्योंकि नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था। बाद में दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और इनके एक हज़ार पुत्र हुए। नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया।

इस बात से क्रोधित दक्ष ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वह सदा इधर उधर भटकते रहेंगे एक स्थान पर ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे।

English summary

narad jayanti 2018

Narad Muni was a learned sage and a messenger of Gods. Narad Jayanti is the birth anniversary of this sage.
Story first published: Saturday, April 28, 2018, 16:55 [IST]
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