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बसंत पंचमी: सरस्वती पूजा के दिन क्यों खाया जाता है पीला भोजन और पहने जाते हैं पीले वस्त्र
लोहड़ी और मकर संक्रांति के जश्न के बाद लोग बसंत पंचमी की तैयारियों में लग जाते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। ये दिन मां सरस्वती की पूजा के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन सिर्फ पढ़ाई लिखाई से जुड़े विद्यार्थी ही नहीं बल्कि संगीत और कला के क्षेत्र से जुड़े लोग भी मां सरस्वती का आशीर्वाद लेते हैं। बसंत पंचमी के दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर सरस्वती माता की वंदना करते हैं और प्रसाद के तौर पर पीला भोजन ही खाते हैं।
बसंत पंचमी का महत्व
भारत के कई हिस्सों में सरस्वती पूजा के लिए खास पंडाल लगाए जाते हैं और उनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है। बसंत पंचमी के दिन धूमधाम से उनकी पूजा की जाती है और फिर उनकी प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है।
बसंत पंचमी या सरस्वती पंचमी के दिन से ही मथुरा में बांकेबिहारी मंदिर में रंगोत्सव की शुरूआत की जाती है।
पीला रंग बसंत का प्रतीक
बसंत को सभी मौसम और ऋतुओं का राजा कहा जाता है। ये एक ऐसा मौसम होता है जिसमें लोगों का मन भी फूलों की तरह खिल उठता है। इस मौसम में न तो बहुत तेज ठंड होती है और न ही चिलचिलाती गर्मी। यह ऋतु एक सुखद एहसास देती है। पेड़ों में नयी कोपलें फूटती हैं और बाग-बगिया की रौनक लौट आती है। खेतों में सरसों के पीले फूल एक ऊर्जा भरने का काम करते हैं। यही वजह है कि बसंत पंचमी के दिन पीले रंग को इतनी महत्ता दी जाती है।
जीवन में खुशहाली लाता है पीला रंग
मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण हो जाता है। सूर्य की किरणें जीवन में तेज और सकारात्मकता भरने का काम करती हैं। बसंत पंचमी के दिन सूर्य की पीली रौशनी का महत्व बढ़ जाता है।
इस दिन महिला, पुरुष, बच्चे सभी पीले वस्त्र पहनते हैं और विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना करते हैं। इस दिन कई घरों में मीठे पीले चावल और केसर हलवा बनाया जाता है। कड़ाके की ठंड के बाद बसंत पंचमी को निकलने वाली खिली धूप में लोग पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं।