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पुरुषों को कौन से इटिंग डिसॉर्डर होते हैं?
जब व्यक्ति अपनी जीवन की मुश्किलों का सामना नहीं कर पाता तब उसके अंदर का डर उसमें एक विकार को जन्म देता है। हालांकि, डर के कारण व्यक्ति जो सोचता होता है वो सच नहीं होता। लेकिन उसकी कल्पना शक्ति उसके विचारों को सच मानने पर मजबूर करती है।
ऐसी स्थिति में व्यक्ति खुद को अकेला पाता है और उस में हालातों से लड़ने की हिम्मत टूट जाती है। इसी दौरान डर उस पर हावी हो जाता है और उसमें इटिंग डिसॉर्डर की शकल ले लेता है।
आज लोग कई हालातों में इटिंग डिसॉर्डर से पीडित नज़र आते हैं। कुछ लोग दुख में अधिक खाते हैं तो कुछ कम, कुछ बेचैनी में खाते हैं तो कुछ गुस्से में। ये विकार अंग्रेजी में कंप्लसीव इटिंग, इमोश्नल इटिंग, बिंग इटिंग व एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसे नामों से जाने जाते हैं।
इस
तरह
की
बीमारियों
का
शिकार
मर्द
व
औरत
दोनों
हो
सकते
हैं।
आत्मविश्वास
की
कमी,
तनाव,
दुख
या
अकेले
रहने
की
इच्छा
के
कारण
मर्दों
में
इटिंग
डिसॉर्डर
नज़र
आ
सकते
हैं।
जब
व्यक्ति
खुद
की
अक्षमताओं
को
स्वीकारने
में
विफल
हो
जाता
है
तो
वह
इटिंग
डिसॉर्डर
का
शिकार
हो
सकता
है।
इस
बीमारी
से
पीडित
व्यक्ति
अक्सर
अपने
आसपास
के
लोगों
व
हालातों
को
अपने
बस
में
करने
की
कोशिश
करता
है।
परंतु
जब
वह
ऐसा
नहीं
कर
पाता
तो
यह
रोग
उसमें
स्पष्ट
नज़र
आने
लगता
है।
हालांकि
महिलाओं
में
यह
बीमारी
काफी
पहले
नज़र
आ
गई
थी
लेकिन
अब
यह
पुरुषों
में
भी
नज़र
आनी
शुरू
हो
गई
है।
परंतु,
शर्मिंदगी
के
कारण
पुरुष
इस
बीमारी
का
जिक्र
कम
करते
हैं।
यह
भी
समझा
जाता
था
कि
यह
बीमारी
केवल
महिलाओं
को
होती
है।
इस
सामाजिक
सोच
के
कारण
पुरुष
इस
बीमारी
को
व्यक्त
करने
से
कतराते
थे।
परंतु अब वक्त बदल गया है। आज पुरुष इस बीमारी को बताते हुए हिचकिचाते नहीं है। एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा व बिग इटिंग डिसॉर्डर पुरुषों में नज़र आने वाले कुछ आम प्रकार के इटिंग डिसॉर्डर हैं। यदि आप इस बीमारी को बढने से रोकना चाहते हैं तो इसे शुरूआत में पहचानना होगा।
इस बीमारी से निपटने में व्यक्ति का परिवार, दोस्त व रिश्तेदार सहायक साबित हो सकते हैं। हालांकि कुछ लोग इस बीमारी को बताने में झिझक महसूस कर सकते हैं। लेकिन रोगी के परिवारजनों को समझना होगा कि रोगी को इस बीमारी से बाहर निकालना बहुत जरूरी है क्योंकि फिर ही वह अपनी ज़िंदगी को आम लोगों की तरह जी सकता है।
यह
बीमारी
इतनी
बडी
नहीं
है
कि
कोई
व्यक्ति
इससे
बाहर
नहीं
आ
सकता।
आपको
बस
केवल
अपने
डर
या
अपने
अंदर
छुपे
दुख
से
लड़ना
है
और
उस
पर
विजय
हासिल
करनी
है।
हालांकि
यह
कहना
आसान
है
परंतु
यदि
आपको
अपनी
ज़िंदगी
से
या
आसपास
मौजूद
लोगों
से
प्यार
है
तो
दिलेरी
का
एक
कदम
आगे
बढाना
ही
होगा।