Just In
- 1 hr ago Dr. Radhakrishnan Punyatithi: राधाकृष्णन जी की पुण्यतिथि के मौके पर शेयर करें शिक्षा पर उनके विचार
- 2 hrs ago Happy Maha Navami 2024 Wishes: देशभर में महानवमी आज, प्रियजनों को भेजें ये बधाई संदेश
- 10 hrs ago World Hemophilia 2024: हीमोफीलिया और ब्रिटिश राजघराने का क्या हैं कनेक्शन, जानें इस दुर्लभ बीमारी के लक्षण
- 11 hrs ago Baby Clothes Washing Tips : न्यू बॉर्न बेबीज के कपड़े धोते हुए न करें गलतियां, जानें सही तरीका
Don't Miss
- News देवेंद्र फडणवीस ने INDIA गठबंधन पर कसा तंज- राहुल गांधी की ट्रेन में हर सहयोगी खुद को इंजन मानता है
- Movies Bollywood News Live- सिकंदर में हुई एक और तगड़ी एंट्री, बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुई बड़े मियां छोटे मियां
- Education PSEB Punjab Board 10th Result 2024: पीएसईबी मैट्रिक परिणाम कब आयेगा? संभावित तिथि यहां
- Finance इन Mutual Funds को मार्च के महीने में 1000 करोड़ रुपए का इनफ्लो, जानें नाम
- Technology 14 हजार तक की छूट के साथ खरीदें Samsung का यह Flip फोन, यहां जानें सबकुछ
- Travel अविश्वनीय!! इन दोनों शहरों के बीच विमान का किराया मात्र 150 रुपए! ये है देश की सबसे सस्ती उड़ान
- Automobiles ये कैसी दुश्मनी! आपसी रंजिश में करोड़ों की Lamborghini कार में लगाई आग, वजह जान हैरान रह जाएंगे आप!
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
इस मंदिर में होती है श्री कृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा
आज हम ज़िक्र कर रहे हैं कोलकाता के मशहूर दक्षिणेश्वर काली मंदिर का। इस मंदिर का एक बहुत बड़ा इतिहास है और इससे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर के प्रांगण में मां काली के अलावा शिव और कृष्ण के मंदिर भी हैं। आम तौर पर खंडित मूर्ति की पूजा हम वर्जित मानते हैं लेकिन यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ श्री कृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है।
आज हम आपको इस मंदिर के पीछे के निर्माण की कहानी और श्री कृष्ण के खंडित मूर्ति की पूजा का रहस्य बताएंगे।
शूद्र महिला ने करवाया था दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण शूद्र जमींदार की विधवा पत्नी रासमणि ने करवाया था। माना जाता है कि रासमणि के पास सब कुछ था किन्तु वह पति के प्यार के लिए तरसती थी। उसकी माँ काली में अपार श्रद्धा थी। जब वह अपनी उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंची तो उसके मन में तीर्थ की करने की इच्छा जागृत हुई। तब उसने यह निर्णय लिया कि वह वाराणसी से अपनी यात्रा शरू करेगी। यह सोच कर उसने माँ काली का ध्यान किया और सो गयी। कहते हैं रात को देवी माँ ने स्वयं सपने में आकर उसे दर्शन दिए और कहा कि उसे किसी भी तीर्थ स्थल पर जाने की आवश्यकता नहीं है। वह यहीं गंगा के किनारे उनके लिए एक मंदिर बनवा दे और उसमें उनकी मूर्ति की स्थापना करवा दे।
माता ने कहा कि वे स्वयं इस मंदिर में विराजमान रहेंगी और अपने भक्तों को दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करेंगी।
इसके बाद माता अंतर्ध्यान हो गयी उतने में रासमणि की नींद खुल गयी और वह अपने सपने के बारे में सोचने लगी। रासमणी ने माता के कहे अनुसार वाराणसी न जाने का निर्णय लिया और गंगा के किनारे पहुँच गयी। वहां जाकर उसने माँ काली के मंदिर के लिए ज़मीन ढूंढनी शुरू कर दी। कहा जाता है कि जब रासमणि मंदिर के लिए जगह ढूंढ रही थी तब एक स्थान पर पहुँच कर अचानक उसे आवाज़ आयी कि हाँ यही वह स्थान है यहीं पर मंदिर बनवाओ। बस फिर क्या था रासमणि के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी उसने फ़ौरन ही मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया।
यह बात 1847 की है और मंदिर बन कर तैयार हुआ 1855 में मतलब कुल आठ सालों में देवी काली का यह भव्य मंदिर तैयार हुआ था।
कहते हैं जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था तब उस समय बंगाल में कुलीन प्रथा ज़ोरों पर थी। ऐसे में एक शूद्र महिला द्वारा बनवाया हुआ मंदिर समाज के लोग स्वीकार नहीं कर रहे थे। कोई भी पुजारी इस मंदिर में पूजा करने के लिए तैयार नहीं था तब रामकृष्ण परमहंस ने इस मंदिर का पुजारी बनना स्वीकार किया। उन्होंने रासमणि से कहा कि एक शूद्र का मंदिर होने के कारण कोई भी इस मंदिर में नहीं आएगा इसलिए वे इस मंदिर को ब्राह्मण के मंदिर के रूप में चलाएंगे। रासमणि ने उनकी बात मान ली थी।
ऐसी मान्यता है कि इसी मंदिर में माँ काली की आराधना करके रामकृष्ण ने परमहंस की अवस्था प्राप्त की थी।
जब माँ काली ने राम कृष्ण परमहंस को दर्शन दिया
माना जाता है कि राम कृष्ण अन्य पुजारियों से एक दम भिन्न थे। उनका उद्देश्य केवल पूजा करके धन अर्जित करना नहीं था बल्कि माँ काली की सेवा कर मोक्ष को प्राप्त करना था। कहते हैं वे घंटो माता की प्रतिमा को निहारते, कभी कभी उन्हें माता के चरणों में बैठ कर रोते हुए भी देखा गया था।
वे इस इंतज़ार में थे कि कब देवी माँ उन्हें अपने दर्शन देंगी। उनका ऐसा बर्ताव देखकर लोग उन्हें पागल तक समझने लगे थे। एक दिन हताश होकर वे खडग से अपना सिर कांटने ही वाले थे कि माँ काली ने स्वयं आकर उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें रोक लिया।
कहा जाता है कि माता के दर्शन से उनका जीवन सफल हो गया था और उन्होंने भौतिक जीवन से कोई मोह नहीं रह गया था। इसके बाद वे जब तक जीवित रहे वे माता की भक्ति और सेवा करते रहे।
श्री कृष्ण के खंडित स्वरुप की पूजा
जैसा की हमने आप को बताया कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर के प्रांगण में शिव जी और श्री कृष्ण दोनों का ही मंदिर है। यहाँ पर श्री कृष्ण के खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है जब की ऐसा करना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है- कहते हैं एक बार जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में श्री कृष्ण की मूर्ति को भोग और आरती के पश्चात वापस उनके शयन कक्ष में ले जाया जा रहा था तभी उनकी मूर्ति ज़मीन पर गिर गयी और उस मूर्ति का एक पैर टूट गया।
यह देख सभी लोग दुखी हो गए और साथ ही उन्हें इस बात का भय सताने लगा कि श्री कृष्ण नाराज़ होकर उन्हें दण्डित करेंगे। उधर रासमणि भी बहुत चिंतित हुई। उसने सभी ब्राह्मणों से इस बात का हल ढूंढने को कहा तब उन्होंने उस खंडित मूर्ति को नदी में बहा कर उसके स्थान पर नयी मूर्ति स्थापित करने की सलाह दी। लेकिन रासमणि को यह सुझाव पसंद नहीं आया। तब वह रामकृष्ण परमहंस के पास गयी और उनसे मदद मांगी। इस पर परमहंस ने उनसे कहा कि यदि घर का कोई सदस्य बीमार हो जाता है या फिर विकलांग हो जाता है तो हम उसकी देखभाल करते हैं और उसकी सेवा करते हैं न की उसका त्याग कर देते हैं।
रासमणि को परमहंस की यह बात बहुत ही अच्छी लगी और उन्होंने फैसला लिया कि मंदिर में उसी खंडित मूर्ति की पूजा की जाएगी।