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हिंदू धर्म में क्यों खास है सावन का महीना
सावन का महीना न सिर्फ भगवान शिव का महीना माना जाता है बल्कि यह समय त्योहारों का भी होता है। विवाहित और कुँवारी दोनों ही स्त्रियां सावन का बड़े ही बेसब्री से इंतज़ार करती हैं और पहले से ही इसके लिए ढ़ेर सारी तैयारियां भी कर लेती हैं।
हिंदू धर्म में इस महीने का एक धार्मिक महत्व होता है। इतना ही नहीं यह माह मौसम में बदलाव का भी प्रतीक होता है यानि गर्मी से मॉनसून के आगमन का पैगाम। पूरे एक महीने चलने वाले इस त्योहार की खूबसूरती मौसम में बदलाव के कारण और भी बढ़ जाती है। इस साल सावन 28 जुलाई से शुरू हो रहा है।
सावन के अलग अलग नाम
तमिल कैलेंडर में इस महीने को अवनि कहा जाता है, वहीं चंद्र कैलेंडर में इसे सावन कहा जाता है। दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इसे आदि मास भी कहा जाता है, वहीं उत्तर पूर्वी इलाकों में जिसमें पश्चिम बंगाल भी है वहां यह श्राबोन के नाम से विख्यात है।
सावन महीने के दौरान शिव जी ने पिया था हलाहल ज़हर
सावन का महीना भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। इस महीने में जहां विवाहित महिलाएं भोलेनाथ की पूजा अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं, वहीं कुँवारी कन्याएं अपना मनपसंद वर पाने की इच्छा में व्रत और पूजा करती हैं। दूसरी ओर पुरुष अपने कंधे पर कांवर रखकर नंगे पैर कांवर यात्रा करते हैं। इस यात्रा में वे गंगोत्री, हरिद्वार और गोमुख जाते हैं और वहां से गंगाजल लेकर आते हैं।
सावन के महीने में समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल नामक विष निकला था। तब समस्त संसार को विनाश से बचाने के लिए शिव जी ने इस घातक विष को पी लिया था।
पुराणों के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि ने अपने अपमान से क्रोधित होकर देवराज इन्द्र को श्राप दे दिया था कि लक्ष्मी जी उनसे रुष्ट हो जाएं और वे लक्ष्मी विहीन हो जाएं। तब इंद्रदेव ने विष्णु जी से सहायता मांगी और विष्णु जी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन का सुझाव दिया। तब सभी देवताओं ने असुरों के साथ मिलकर खीरसागर में मंथन करने का निर्णय लिया। किन्तु असुरों ने देवताओं के समक्ष यह शर्त रखी कि समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत में उन्हें भी बराबर का हिस्सा मिले।
देवताओं और असुरों ने मिलकर मंथन शुरू किया लेकिन इससे पहले कि इस मंथन से लक्ष्मी जी और अमृत निकलता, हलाहल नामक विष बाहर आ गया। यह विष इतना खतरनाक था कि यह चारों ओर तबाही मचा सकता था। तब सभी को बचाने के लिए शिव जी ने विष पान कर लिया। देवी पार्वती जानती थीं कि यह विष बहुत ही घातक है इसलिए उन्होंने अपने हाथों से शिव जी के गले को पकड़ लिया और विष को उनके गले में ही रोक दिया था जिसके कारण उनका गला नीला पड़ गया। इसी घटना के बाद से महादेव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। इस विष के जलन को कम करने के लिए भगवान को ढ़ेर सारे जल की आवश्यकता थी जिसके लिए गंगा जी को लाया गया था।
इसलिए सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करना बेहद शुभ माना गया है। इसके अलावा सोमवार को शिवलिंग पर दूध भी अर्पित करना चाहिए चूँकि सोमवार का दिन शिव जी का दिन माना जाता है।
सावन के महीने में बड़े, छोटे, बुजुर्ग सभी शिव जी की आराधना करते हैं। भोलेनाथ के विषय में कहा जाता है कि इन्हें प्रसन्न करने के ढ़ेर सारे चढ़ावे की ज़रुरत नहीं होती बल्कि इस महीने में जो भी सच्चे मन से इनकी पूजा करता है महादेव उसकी प्रार्थना ज़रूर सुनते हैं।
सावन के महीने में व्रत और त्योहार
यूं तो सावन का महीना खुद ही एक त्योहार होता है लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे व्रत और पर्व होते हैं जो इस महीने में आते हैं जैसे कामिका एकादशी, हरयाली तीज, नाग पंचमी, सावन पुत्रदा एकादशी, रक्षा बंधन, गायत्री जयंती, हयग्रीव जयंती, नरली पूर्णिमा और संस्कृत दिवस।
साथ ही इस महीने प्रत्येक सोमवार को शिव जी के लिए व्रत भी रखा जाता है, मंगलवार को गौरी व्रत, शुक्रवार को वारामहालक्ष्मी व्रत और एकादशी का भी व्रत रखा जाता है।
आप सभी को हमारी तरफ से सावन की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं भगवान शिव आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।