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क्‍यों बेटे की जगह बहू सीता ने किया था अपने ससुर दशरथ का पिंडदान?

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हमारे पुराणों में चार युगों का वर्णन किया गया है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। इन सभी में सतयुग को सबसे अच्छा और पवित्र युग माना जाता है। कहते हैं सतयुग में महान पुरुष, साधु, संत या दिव्य अवतार जो कुछ भी कहते थे वह सत्य हो जाता।

उस वक़्त दिया हुआ श्राप या वरदान बहुत ही प्रभावी माना जाता था। वह एक ऐसा समय था जब प्रकृति के सभी जीव एक दूसरे की भाषा समझते थे और चारों ओर पीड़ा कम और खुशहाली ज़्यादा हुआ करती थी। साफ और सच्चे ह्रदय वालों के मुख से जो भी निकल जाता वह सत्य साबित होता। यही कारण था कि एक पीड़ित पुरुष/महिला का श्राप कभी खाली नहीं जाता और उसका परिणाम भी भयानक होता। ऐसे ही श्राप देवी सीता ने भी एक गाय, एक कौवे, केतकी पुष्प, एक पुजारी और तुलसी जी को दिया था।

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जब सीता जी ने किया पिंड दान

यह कहानी सतयुग की है जब श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी वनवास काट रहे थे। श्री राम और लक्ष्मण के पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी। उसी दौरान पितृपक्ष था और उन्हें पिंड दान करना था जो किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर होता है इसलिए यह तीनों गया के फल्गु नदी के तट पर पहुंचे।

कहते हैं जब श्री राम, लक्ष्मण और देवी सीता गया के फल्गु नदी पहुंचे, तब श्री राम ने पंडित जी से पूजा की सामग्री के विषय में पूछा जिसके पश्चात उन्होंने लक्ष्मण जी को पास के गाँव में पूजा के लिए ज़रूरी सामान लाने को कहा। जब काफी देर बाद लक्ष्मण जी नहीं लौटे तो श्री राम ने खुद ही जाकर लक्ष्मण जी की खोज खबर लेने का निर्णय लिया। वहीं दूसरी ओर पंडित जी बार बार उन्हें शुभ मुहूर्त के निकल जाने के बारे में बता रहे थे, साथ ही उन्हें अपनी तैयारियां जल्द पूरी करने के लिए भी कह रहे थे। श्री राम तुरंत लक्ष्मण की खोज में निकल पड़े।

इधर जैसे जैसे समय बीत रहा था सीता जी की चिंता भी बढ़ रही थी। समय बीत रहा था और श्री राम तथा लक्ष्मण लौटे ही नहीं थे। इस बार देवी सीता ने यह निर्णय लिया कि उनके पास पूजा के लिए जो भी सामग्री उपलब्ध है वह उन्हीं से स्वयं पूजा करेंगी। तब देवी सीता ने पंडित जी से कहा कि श्री राम और लक्ष्मण को लौटने में देर हो रही है इसलिए वे पूजा आरंभ करें शायद तब तक वे वापस आ जाए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह अकेले ही यह पूजा समाप्त कर लेंगी। विधिपूर्वक पूजा करने के पश्चात देवी सीता ने अंत में पिंड दान किया और जैसे ही उन्होंने प्रार्थना करने के लिए अपने हाथ जोड़े और आँखें बंद की उन्हें एक दिव्य स्वर सुनाई दिया कि उनकी पूजा सम्पन्न हुई और स्वीकार भी हो गयी है।

यह सुनकर देवी सीता को बहुत प्रसन्नता हुई और साथ ही उन्हें इस बात की शान्ति मिली कि उनकी पूजा सफल हुई और राजा दशरथ ने उसे स्वीकार कर ली। हालांकि वे इस बात को भी भली भांति जानती थी कि श्री राम और लक्ष्मण इस बात पर भरोसा नहीं करेंगे क्योंकि माना जाता है ऐसी पूजा बिना पुत्रों के पूरी नहीं होती।

तब सीता जी ने फल्गु नदी, पूजा में इस्तेमाल होने वाली गाय, केतकी पुष्प, वट वृक्ष, कौवे, तुलसी के पौधे और उस पंडित को इस बात का साक्षी बनने को कहा उन सभी ने उनकी आज्ञा का पालन किया।

क्यों दिया सीता जी ने श्राप

श्री राम को लाख समझाने के बाद भी जब उन्होंने सीता जी की बात नहीं मानी तब सीता जी ने सभी साक्षियों से अनुरोध किया कि वे श्री राम को सच्चाई बताएं किन्तु श्री राम के क्रोध को देख कर किसी ने भी सत्य कहने की हिम्मत नहीं की, केवल वट वृक्ष ने श्री राम को सारी बात बतायी। इस बात से देवी सीता बहुत दुखी हुईं और क्रोधित होकर उन सभी को श्राप दे दिया।

देवी सीता ने दिया यह श्राप

देवी सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि वह सिर्फ नाम की नदी रहेगी, उसमे पानी नहीं रहेगा। इसी कारण आज भी इस नदी में पानी न होने कारण यह सूखी पड़ी है।

फिर सीता जी ने गाय को श्राप दिया कि उसके पूरे शरीर की पूजा नहीं की जाएगी। हिन्दू धर्म में केवल उसके शरीर के पिछले हिस्से को ही पूजनीय माना जाएगा। साथ ही उसे यहां वहां भटकने का भी श्राप दिया।

सीता जी ने पंडित को कभी संतुष्ट न रहने का श्राप दिया। इस कारण पंडित दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होता।

सीता जी ने केतकी पुष्प को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में उसे नहीं चढ़ाया जाएगा।

तुलसी जी को सीता जी ने श्राप दिया कि वह गया की मिट्टी में कभी नहीं उगेगी।

सीता जी ने कौवे को हमेशा लड़ झगड़कर खाने का श्राप दिया था।

वट वृक्ष को सीता ने आशीर्वाद दिया कि पिंड दान में इस वृक्ष की उपस्थिति ज़रूरी होगी। साथ ही देवी ने वट वृक्ष को लम्बी आयु और दूसरों को छाया प्रदान करने का भी वरदान दिया तथा यह भी कहा कि पतिव्रता स्त्रियां इस वृक्ष की पूजा करके अपने पति की लम्बी आयु की कामना करेंगी।

English summary

When Sita Cursed These

These curses given by Goddess Sita prevail even until today. Read on to know why a cow, a Tulsi plant, a Ketaki flower, the river Phalgu and a priest were cursed by Goddess Sita.
Story first published: Thursday, May 31, 2018, 11:19 [IST]
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