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जानिये क्या है बड़ी तीज माता की कथा
तीज़, उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जिसमें माता पार्वती और उनके पति भगवान शिव की आराधना की जाती है। यह पर्व, प्रेम और उनके बीच के स्नेह का प्रतीक है और हर महिला की कामना होती है कि उन दोनों ही तरह ही इनका प्रेम भी बना रहे। 2017 में यह पर्व ग्रेगोरीयन कैलेंडर के अनुसार 26 जुलाई के दिन मनाया जाएगा।
चंद्र-सौर कैलेंडर का पालन हिंदु करते हैं और इसके अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है और इन्हें तीज माता के नाम से जाना जाता है। विवाहित और अविवाहित दोनों ही महिलाएं इस उपवास को रखती हैं और पूजा करती हैं।
विवाहित महिलाएं, सुखमय वैवाहिक जीवन और कुंवारी लड़कियां, अच्छा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हं। ऐसा मानते हैं कि इस व्रत को रखने वाली महिलाओं की मृत्यु उनके पति से पहले और आयु पूर्ण होने पर हो जाती है और सुहागिन मृत होकर मोक्ष को प्राप्त होती हैं।
तीज़ माता और हरियाली तीज़ की किंवदंतिया
किंवदंती यह है कि जब देवी सती का निधन हो गया, भगवान शिव क्रोध से आपे से बाहर हो गए और जब वो शांत हुए तो गहरे और गहन ध्यान में समां गए।
इस
बीच,
देवी
सती
ने
फिर
से
जन्म
लिया
और
एक
कठिन
तपस्या
की।
इस
तरह,
उन्होंने108
जन्म
लिया,
जिसमें
उन्होंने
एक
जन्म
में
कठोर
तपस्या
की।
वो
जन्म
उनका
अंतिम
जन्म
था
और
वो
पर्वत
राज
की
पुत्री
बनकर
पैदा
हुई
थी।
उन्होंने
भगवान
शिव
को
पाने
के
लिए
घनघोर
तपस्या
की
और
उस
दिन
उनका
विवाह
हो
गया।
तीज़
के
अवसर
पर
होने
वाली
पूजा
का
विवरण
तीज़ तीन दिनों का पर्व होता है और इन दिनों माता पार्वती को घर में स्थापित किया जाता है। पट से माता पार्वती की मूर्ति को लाया जाता है जो एक पवित्र स्थान होता है। इस मूर्ति का श्रृंगार किया जाता है। मूर्ति को रंगने के बाद, कपड़े और गहने पहना दिये जाते हैं और इनको पूजा के लिए तैयार कर दिया जाता है।
पूजा शुरू कर दी जाती है। मूर्ति पर दूध, फल, मेवा, नुक्ति, घेवर, चप्पाती और जल चढ़ाया जाता है। मंत्र और श्लोक पढ़ें जाते हैं। बाद में फूलों से ढकी पालकी में मूर्ति को बैठाकर उसे ले जाया जाता है। इस पालकी को तीज माता की पालकी के नाम से जाना जाता है। पालकी को लाल कपड़ों वाले पुरूष उठाते हैं और वो उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। जयपुर और राजस्थान में आप ये परम्परा सबसे ज्यादा देखेंगे।
पालकी को उठाते समय बैंड बाजा भी बजाया जाता है और इस दौरान कई सारे हाथी भी जुलूस में शामिल होते हैं। लोग नाचते और गाते हुए चलते हैं। ऊंट, घोड़े और कई सवारियां आपको देखने को मिलेगी।
इस पूजा के दौरान, लोग माता पर प्रसाद, गहने, रूपए और कई बहुमूल्य सामान भेंट चढ़ाते हैं। जिसे माता को पहना भी दिया जाता है।