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भगवान श्रीकृष्ण की कहानियों का आध्यात्मिक प्रतीकवाद
भगवान श्रीकृष्ण को सभी देवताओं में से परम माना जाता है क्योंकि उन्होंने इंसान के बीच रहकर ही उन्हें जीवन के मूल पाठ सिखाएं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों को बेहद प्यार करते थे। वो अपने भक्तों की भूलों को
माफ कर देते थे और उन्हें सही पाठ बतलाते थे। उनकी बातें और उनका स्नेह ही उनकी विशेषता थी जिससे कोई भी उनसे बच नहीं पाता था। उनकी कहानियां और किस्से बहुत ही रोचक हैं जो हर बच्चे को भी प्रिय लगते हैं। आज हम आपको ऐसी
ही कुछ कहानियों को इस लेख में बताएंगे जो कि निम्म प्रकार हैं:
भक्ति का कोई प्रकार न होना -
अगर भगवान कृष्ण को देखें तो उनकी भक्ति के लिए कोई भी प्रकार या ढोंग करने की आवश्यकता नहीं है। पौराणिक कथाओं में गोपिकाओं को उनकी प्रेमिका कहा जाता है। वहीं उनके प्रिय मित्र सुदामा थे जो बाल्यकाल से ही उनके मित्र हुआ करते थे।
द्रौपदी के भाई और संरक्षक
हाल के समय में, हम मीरा बाई को देखते हैं जो भगवान कृष्ण से प्रेम करती थीं और इसके लिए उन्होंने परिवार का मोह भी त्याग दिया था। केरल की कुरुर अम्मा ने उस पर चिल्लाया और अपने बेटे के साथ ऐसा करने को नहीं कहा। ऐसा कहा जाता है कि वह एक बार वह बैल के रूप में भी प्रकट हुये थे।
एक मत है कि वो मुस्लिम के पूज्नीय हैं-
धर्म कोई भी लेकिन कृष्ण सभी को प्रिय हैं। कई मुस्लिम भी भगवान कृष्ण को मानते हैं।
कृष्ण के अवतार का प्रतीकवाद
अवतार दो संस्कृत शब्दों का संयोजन है - 'आवा' जिसका अर्थ है आगमन और 'तारा' जिसका अर्थ है स्टार। कहा जाता है कि वो चाओस अवधि के दौरान जन्मे थे। उनका जन्म कंस का अंत और बुराईयों को समाप्त करने के लिए हुआ था। कंस, कृष्ण के मामा और उनकी उनकी जैविक मां के भाई थे। जिसकी वजह से जेल में जन्में कृष्ण को यशोदा के पास पालन के लिए भेज दिया गया था। जो कि बेहद सुरक्षात्मक और अनोखे ढंग से उनके पिता के द्वारा किया गया था। जबकि जेल में सात द्वार थे और भारी मात्रा में सैनिक लगे थे। पर उस समय सभी की आंख लग गई और वो उन्हें बाहर अपने मित्र को दे आएं। भगवान कृष्ण के जन्म के समय से ही उनके ऊपर मुसीबतें आने लगीं लेकिन वो भी भी घबराएं नहीं और उन्होंने डटकर सामना किया।
कृष्ण के थे 6 अन्य भाई -
भगवान कृष्ण से पहले उनके 6 भाईयों का जन्म हुआ था जिन्हें कंस ने पटक-पटक कर मार डाला। ऐसा माना जाता है कि एक बार देवकी ने अपने सभी मृत पुत्रों को कंस से वापस लाने को कहा ताकि वो उन्हें देख सकें।
उनका नाम स्मर, उदगी, पेरिसवंगा, पटंगा, कुसुब्रट और घर्नी था। वे मानव की विभिन्न इंन्द्रियों के रूप में जाने जाते हैं। स्मर स्मृति, उदगी बोली, पेरिसविंग सुनना आदि। इनकी मृत्यु के बाद भगवान कृष्ण का जन्म हुअा।
गोपिकाओं के साथ -
भगवान श्रीकृष्ण के गोपिकाओं के प्रेम के चर्चे सभी ने सुनें होंगे जिसे रासलीला भी कहा जाता था। ये सभी विवाहित थीं और भगवान श्रीकृष्ण को बालक के रूप में स्नेह करती थीं। बस उनके मन में भगवान श्रीकृष्ण का बालपन हमेशा छाया रहता था।
राधा और कृष्ण का प्रेम
भगवान श्रीकृष्ण और राधा की प्रेमकथा काफ सुंदर है जिसमें बाद में दोनों बिछड़ जाते हैं। जिसके बाद राधा का विवाह हो जाता है और वो सदैव मन में भगवान श्रीकृष्ण को बनाएं रहने के बावजूद भी कहीं और रहने लगती हैं। वहीं भगवान श्रीकृष्ण भी गृहस्थ जीवन बसा लेते हैं। लेकिन इनके प्रेम को आत्मा और परमात्मा की तरह माना जाता है जो कि एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
कृष्ण महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लेते
यह एक ज्ञात तथ्य है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया। इसके बजाय उन्होंने अर्जुन के लिए सारथी बनने का विकल्प चुना। लेकिन बारबाइक ने युद्ध के अंत में कहा, यह सब कृष्ण थे। उन्होंने जहां भी देखा सब लोग उसे कृष्ण के रूप में दिखाई दिये। जो मर गए या जो मारे गए।
वो सामने से न आकर उन्होंने सबक सिखाने के लिए हमें ही साधन बनाया और मानवता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने हमारे जीवन को सीधे रूप से परिवर्तित नहीं कर सकता, लेकिन वह सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं। जिन्होंने हर बुराई का अंत कर दिया।