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उत्तराखंड का ये पौधा नहीं है किसी औषधि से कम, वैज्ञानिकों ने भी माने इस पहाड़ी नीम के गुण को
उतराखंड की वादियों में ऐसी कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां मौजूद है जो औषधीय गुणों से युक्त है। प्रकृति ने इस जगह को ऐसी कई चमत्कारी औषधियां से नवाजा है, जिनका प्रयोग स्थानीय लोग सदियों से करते आ रहे हैं। बीते समय में इनमें से कई का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए इन वनस्पतियों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। पहाड़ों में दूर-दराज इलाकों में लोग रोजमर्रा के जीवन में इन वनस्पतियों का इस्तेमाल कर खुद को सेहतमंद रखते हैं। इन्हीं में से एक है तिमूर। जिसें लोग पहाड़ी नीम भी कहते हैं।
पहाड़ में इस पौधें का इस्तेमाल लोग दंतमंजन के तौर पर करते हैं। इसके अलावा ये पौधा और भी कई बीमारी दूर करने के काम आता है।
कई नामों से जाना जाता है
कुमाऊं में तिमूर, गढ़वाली में टिमरु और संस्कृत में तेजोवती नाम से जाने जाने वाले इस औषधीय वनस्पति का लेटिन नाम जेनथोजायलम अर्मेटम है। झाड़ीनुमा इस वृक्ष की लंबाई 10 से 12 मीटर होती है। इस वनस्पति का एक-एक हिस्सा औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
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दांतों और मंसूड़ों के लिए फायदेमंद
तिमूर पहाड़ों में नीम की तरह दातून के प्रयोग में लाया जाता है। यह एक कांटेदार पेड़ होता है, जिसपर छोटे-छोटे फल लगते हैं और इन दानों को चबाने पर झाग भी बनता है। यह दांत दर्द की अचूक औषधि है, दांत से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या इसकी टहनी से दातून करने या दाने चबाने से दूर हो जाती है।
पायरिया जैसे मसूड़ों के रोग के लिए भी इसे बेहतरीन औषधि के रूप में जाना जाता है।
एक्यूप्रेशर के तौर पर भी करता है काम
इसकी सूखी टहनी भी काफी मजबूत होती है, इसे प्रायः लाठी के रुप में भी प्रयोग किया जाता है, साथ ही दानेदार होने के कारण इसका उपयोग एक्यूप्रेशर के तौर पर भी किया जाता है।
माउथ फ्रेशनर के आता है काम
इसके बीजों का प्रयोग माउथ फ्रेशनर, कृमिनाशक दवा के साथ ही उदर रोगों के लिए किया जाता है। बीजों में पाया जाने वाला लीनालोल नामक रसायन एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है।
रक्तचाप को रखें नियंत्रित
तिमूर औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी टहनियों से निर्मित औषधि रक्तचाप को नियंत्रित करती है। इसकी पत्तियों के चूर्ण का उपयोग दांतों के लिए उपयोगी टूथ पाउडर बनाने में किया जाता है।
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धार्मिक महत्व भी है
उत्तराखण्ड में तिमूर की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, तिमूर की लकड़ी को शुभ माना जाता है. जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है। तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।