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समुद्र मंथन से हुई थी देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति

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देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद से धन, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। कहते हैं जिस पर माता प्रसन्न हो जाती है उसके जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती। किन्तु यही देवी अगर रुष्ठ हो जाए तो व्यक्ति का जीवन दुखों से भर जाता है। वैसे तो देवी लक्ष्मी की उत्त्पति से जुड़ी हुई कई कथाएं प्रचलित है उन्ही में से समुद्र मंथन की कथा को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।

आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से देवी लक्ष्मी की उत्त्पति का रहस्य बताएंगे। आइए जानते है कैसे हुआ माता लक्ष्मी का जन्म।

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जब समुद्र मंथन हुआ

विष्णु पुराण के अनुसार एक बार देवराज इंद्र ने महामुनि 'दुर्वासा’ द्वारा दी गई पुष्पमाला का अपमान कर दिया था। इस बात से क्रोधित हो कर महामुनि ने इंद्र को 'श्री’ हीन होने का श्राप दे दिया जिसके कारण सभी देवगण और मृत्युलोक भी 'श्री’ हीन हो गए थे। देवी लक्ष्मी रूठ कर स्वर्ग को त्याग कर बैकुंठ आ गई और महालक्ष्मी में लीन हो गई। सभी देवता परेशान होकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपनी समस्या का समाधान करने को कहा। तब ब्रह्मा जी उन्हें विष्णु जी के पास बैकुंठ ले गए। श्री हरि ने उनकी व्यथा सुनी और कहा कि वे असुरों की सहायता से सागर का मंथन करें, तब उन्हें सिंधु कन्या के रूप में लक्ष्मी पुन: प्राप्त हो जाएगी।

इसके बाद सभी देवताओं ने असुरों को इस विषय में बतया कि समुद्र में अमृत से भरा हुआ घड़ा है जिसे पीकर सभी अमर हो जाएंगे और साथ ही बहुमूल्य रत्नो का खज़ाना है इसलिए उन्हें देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करना होगा यह बात सुनकर असुर फौरन मान गए।

बाद में सब ने मिलकर मंदराचल पर्वत को उठाकर समुद्र में डाल दिया। कहते हैं जैसे ही उस पर्वत को समुद्र में डाला गया वैसे ही वह सागर के नीचे की ओर धंसता चला गया तभी भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर उस पर्वत को अपनी पीठ पर रोक लिया।

मंदराचल हैरान हो गया कि कौन-सी शक्ति है जो हमें नीचे जाने से रोक रही है। तभी उन्हें एहसास हुआ कि भगवान विष्णु उनके आस पास है। नागों के राजा वासुकि को उस पर्वत के चारों ओर लपेट कर देवता और असुर मंथन करने लगें। श्री हरि ने स्वयं वासुकि नाग के मुख को पकड़ रखा था और अन्य देवता भी उसी ओर थे। यह देखकर दैत्यगण नाराज़ हो गए और कहने लगे कि वासुकि की पूँछ की तरफ से मंथन में हिस्सा नहीं लेंगे।

माना जाता है कि देवता भी यही चाहते थे कि सभी दैत्यगण वासुकि के मुख की ओर ही रहे। इसलिए वे तुरंत वहां से हट गए और वासुकि की पूँछ पकड़ ली। कहते हैं सागर-मंथन से सबसे पहले हलाहल नामक विष निकला जिसे स्वयं महादेव ने पी लिया और अपने कंठ में ही उसे रोक लिया। तब से वे नीलकंठ के नाम से भी जाने जाते हैं।

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जब देवी लक्ष्मी उत्पन्न हुई

शिव जी के विषपान के पश्चात कामधेनु नमक गाय उत्पन्न हुई फिर उच्चै:श्रवा अश्व, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, शंख, केतु, धनु, धन्वंतरि, शशि और कुल मिलाकर चौदह रत्न सागर के अंदर से निकले थे। इन सबके बाद समुन्द्र मंथन से माता लक्ष्मी उत्पन्न हुईं। जैसे ही देवी लक्ष्मी प्रकट हुई उनकी अद्भुत छटा को देख कर देवता और असुर आश्चर्यचकित रह गए। सभी उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करने लगे। तब देवराज इंद्र ने माता लक्ष्मी के लिए एक सुंदर आसन दिया जिस पर माता विराजमान हो गईं।

माता की उत्पत्ति से चारों ओर हर्ष फ़ैल गया। तब समस्त ऋषि मुनियों ने विधिपूर्वक माता की पूजा अर्चना की जिसके पश्चात भगवान विश्वकर्मा ने देवी लक्ष्मी को कमल समर्पित किया और सागर ने उन्हें पीला वस्त्र दिया। ऐसी मान्यता है कि साज़ श्रृंगार और आभूषणों से लदी लक्ष्मी जी ने चारों ओर अपनी दृष्टि घुमायी किन्तु उन्हें अपने लिए कोई योग्य वर नहीं मिला क्योंकि वे तो विष्णु जी को तलाश कर रही थीं। तभी उनकी नज़र श्री हरि पर पड़ी और उन्होंने फ़ौरन ही अपने हाथ में पकड़ी हुई कमल की माला को विष्णु जी के गले में डाल दिया।

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असुरों ने अमृत से भरे घड़े पर किया कब्जा

कहा जाता है कि जब विष्णु जी समुद्र मंथन से निकला हुआ अमृत का घड़ा लेकर निकले तब दैत्यों ने उस घड़े को अपने कब्ज़े में कर लिया था। तब श्री हरि ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों से छल कर वह अमृत वापस ले लिया था। बाद में फिर सभी देवताओं ने उस अमृत को आपस में बाँट लिया था।

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ऋषि भृगु की पुत्री देवी लक्ष्मी

एक अन्य कथा के अनुसार लक्ष्मी जी ऋषि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से पैदा हुई थीं। माता पार्वती के पिता राजा दक्ष और ऋषि भृगु के भाई थे। जिस प्रकार माता पार्वती शिव जो को पति रूप में पाना चाहती थीं, ठीक उसी प्रकार देवी लक्ष्मी भी विष्णु जी को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं।

माता ने श्री हरि विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए समुद्र के तट पर कठिन तपस्या की जिसके बाद विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार किया था।

English summary

goddess Lakshmi birth story

In Hindu religion, Lakshmi was born from the churning of the primordial ocean (Samudra Manthan) and she chose Vishnu as her eternal consort.
Story first published: Friday, April 27, 2018, 18:04 [IST]
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