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क्या है जौहर? क्यूं राजपूत महिलाएं शौर्य और सम्मान के नाम पर खुद को भस्म कर देती थी?
इन दिनों मीडिया में संजय लीला भंसाली की आने वाली मूवी पद्मावती सुर्खियों में है। राजस्थान के राजपूत समाज का मानना है कि इस मूवी में संजय लीला भंसाली ने तथ्यों के साथ खिलवाड़ किया है। वहीं राजपूत समाज का कहना है कि चितौड़ की रानी पद्मावती ने राजपूती आन बान और शान के लिए जौहर कर खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था।
राजपूतों के अनुसार खुद की प्रतिष्ठा और मर्यादा के लिए रानी पद्मावती ने दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सामने समपर्ण करने की जगह राजपूत महिलाओं के साथ जौहर करने की राह चुनी। ताकि कोई भी राजपूत महिला अलाउद्दीन खिलजी के हाथ न लग पाएं। खिलजी ने क्यों की थी चित्तौड़ पर चढ़़ाई, क्या है रानी पद्मावती का सही इतिहास
क्या होता है जौहर?
जौहर को राजस्थान में साका के नाम से भी जाना जाता है, जौहर या साका राजपूतों की एक प्रथा रही है जब कोई भी बाहरी इस्लामिक सेना राजपूत साम्राज्य पर आक्रमण करतीं थी तब जब राजपूत सेना को लगता था कि वो इस युद्ध समाप्ति में जीत हासिल नहीं कर पाएंगे तो महल में बैठी राजपूत रानियां और दूसरी महिलाएं दुश्मनों से अपनी आबरु बचाने और उनकी बंदी बनाए जाने से बचने के लिए जौहर करती थी। जिसमें आग के बड़े से कुंड में रानियां खुद को झोंक कर अपने आत्म सम्मान की रक्षा करती थी। यह एक तरह से सती प्रथा का ही रुप है, लेकिन सती प्रथा से अलग है।
मार्गेट पी बेटिन ने अपनी किताब एथिक्स ऑफ सुसाइड में इसका उल्लेख किया है कि जौहर प्रथा राजपूतों में सामान्य प्रथाओं की तरह थी, जो अपने आत्मसम्मान के लिए अपनी जिंदगी का मूल्य चुकाने से भी नहीं डरते थे। जूलिया राबर्ट्स से लेकर मेडोना तक फेमस हॉलीवुड स्टार, जिन्होंने अपनाया हिंदू धर्म
जौहर और सती में फर्क
जौहर प्रथा, सती प्रथा से बिलकुल अलग होती थी सती प्रथा में किसी पुरूष के मरने के बाद उसकी विधवा औरत को सती होना पड़ता था और कई बार तो जबरन भी आग में फेंक दिया जाता था लेकिन जौहर प्रथा इस से बिल्कुल अलग होती थी जौहर प्रथा में राजपूत महिलाओं पर किसी तरह का दवाब नही होता था अथवा यह राजघराने की औरतों और उनकी दासियों के आत्मसम्मान को बचाने के लिये यह प्रथा बनाई गई थी। जब इस्लामिक आक्रमणकर्तओं को कोई भी औरत हाथ ना लगती तो वे अन्य हिन्दू जाती की औरतों को अपना शिकार बनाते और जबरन उनका धर्म परिवर्तन भी करवाते थे इस तरह इनकी सेना की जनसंख्या मे भी बढ़ोतरी होती थी।
चित्तोड़ में अभी तक कितने जौहर हुए
चित्तौड़गढ़ के साके- चित्तौड़ में सर्वाधिक तीन साके हुए हैं।
प्रथम साका- यह सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी पद्मनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था।
चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था।
दूसरा साका- यह 1534 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी (हाडी) कर्मवती के नेतृत्व में स्त्रियों ने जौहर किया था। राजमाता हाड़ी (कर्णावती) और दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी।
तृतीय साका- यह 1567 में राणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था जिसमें जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना का जमकर मुकाबला किया और स्त्रियों ने जौहर किया था। यह साका जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के प्रसिद्ध है।
मध्यकाल के प्रसिद्ध लेखक अबुल फजल की किताब आइने अकबरी में 1567 की तीसरे साके का जिक्र भी मिलता है।
साका क्या होता है?
साका, जौहर से ही जुड़ी हुई प्रथा है, जब राजपूत सेना को लगता है कि अब वो यह तकरीबन युद्ध हार गए तब सम्मान और वीरगति पाने के लिए महल में बची हुई सेना केसरिया पगड़ी पहनकर (जो कि त्याग का प्रतीक होता है ) युद्ध मैदान की तरफ निकल जाते है। जैसे ही राजा की वीरगति का संकेत मिलता है, इसके बाद रानियां महल में ही जौहर का इंतजाम करती है, और खुद को अग्नि में समर्पित कर देती है।
रानी पद्मिनी का जौहर ने ही क्यूं बनाई इतिहास में जगह
मलिक मुहम्मद जायसी लिखित किताब पद्मावती में जिक्र मिलता है कि चितौड़ के राजा रतनसेन ने दुनिया की अद्भूत खूबसूरत राजकुमारी पद्मावती से शादी हुई थी, महल में गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त एक कलाकार को राघव चैतन्य को राजा ने उसे तुरंत बर्खास्त किया। इसी बात की जलन लिए राघव चेतन अलाउद्दीन खिलजी के पास जा पहुंचा।
उसने खिलजी के मन में चित्तौड़ की संपत्ति को हथियाने की साजिश गढ़ी। साथ ही उसे रानी पद्मिनी का एक खूबसूरत चित्र भी दिखाया, जिसमें उन्होंने अपने हाथ में कमल का फूल थामा हुआ था। खिलजी रानी का चित्र देखते ही आकर्षित हो गया और किसी भी कीमत पर चित्तौड़ का किला, उसकी संपत्ति और साथ ही रानी पद्मिनी पर कब्जा करने के लिए तैयार हो गया।
अलाउद्दीन खिलजी ने एक शर्त रखी कि वो सिर्फ रानी की परछाई देखकर वापस चला जाएगा। लेकिन अलग घटनाक्रम के चलते हुए वर्ष 1303 राजा रतनसिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध हुआ और युद्ध के समाप्त होने की सूचना राजा रतन सिंह के शहीद होने के साथ आई।
जैसे ही यह खबर महल के भीतर पहुंची, राजा की सभी रानियां एवं अन्य सैनिकों की पत्नियां भी रानी पद्मिनी की अगुवाई में जौहर कुंड की ओर बढ़ीं। यह कुंड महल के एक कोने में काफी गहराई में बना था। घने रास्ते से होते हुए सभी जौहर कुंड पहुंचीं।
सम्मान और शौर्य के प्रतीक में याद किया जाता है पद्मावती का जौहर
हालांकि अब ऐसी कोई प्रथा अस्तित्व में नहीं है, लेकिन पद्मावती का जौहर आज भी यहां लोककथाओं की तरह प्रचलित है। हर साल आज भी फरवरी-मार्च राजस्थान के चित्तोड़गढ़ में जौहर मेला आयोजित होता है।
इस फेस्टिवल में राजपूत महिलाओं के शौर्य और त्याग को याद किया जाता है, जब कि आज भी इस राजकुमारी के परिवार से जुड़े लोग इस फेस्टिवल में शामिल होते है।